एक दिन जब गुरु वशिष्ठ सभी शिष्यों को पुण्य और पाप के फलों पर चर्चा कर रहे होते हैं, तब वे भरत और लक्ष्मण की जिज्ञासा पर सभी को जीवन-मरण के गूढ़ तत्वों का भी ज्ञान कराते हैं। शिव रात्रि के दिन सभी अपने आराध्य महादेव की पूजा-अर्चना करते है, गुरु माँ से संगीत की शिक्षा प्राप्त कर चुके श्री राम जब वीणा को बजाते है, तो उससे प्रसन्न होकर भगवान शिव नृत्य करने लगते है। चारों राजकुमारों की शिक्षा पूर्ण होने पर मंत्री आर्य सुमन्त राजसी वस्त्र लेकर गुरुकुल जाते है। गुरुकुल से विदा देते समय गुरु वशिष्ठ अंतिम उपदेश प्रदान करने के साथ सभी को आचार्य ऋण से मुक्त कर देते है। गुरु वशिष्ठ और मंत्री आर्य सुमन्त के साथ सभी राजकुमारों को गुरुकुल से वापस देख अयोध्या का जनसमूह उनके स्वागत में उमड़ पड़ता है। तीनों रानियाँ - कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा वर्षों बाद अपने पुत्रों से मिलकर भावविभोर हो जाती हैं। महर्षि वशिष्ठ दशरथ को आश्वस्त करते हैं कि बाल्यावस्था में गुरुकुल आए ये राजकुमार अब समस्त विद्याओं, नीति, शस्त्र और शास्त्र में पूर्णतः दक्ष हो चुके हैं। अब राजकुमारों का जीवन राजमहल में माता-पिता के सान्निध्य में प्रेमपूर्वक व्यतीत होने लगता है। वही दूसरी तरफ ताड़का नामक राक्षसी द्वारा अपने यज्ञ में विघ्न डालने पर ऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ से सहायता माँगने आते है और राम को अपने साथ भेजने का अनुरोध करते है। पुत्र मोह के कारण जब दशरथ सहमति नहीं देते, तो गुरु वशिष्ठ अपने अनुभव और ज्ञान के आधार उन्हें समझाते हैं कि राम केवल उनका पुत्र नहीं, एक दिव्य शक्ति हैं - जिनमें असुरों का अंत करने की सामर्थ्य है। राजा दशरथ अन्ततः सहमत हो जाते हैं और लक्ष्मण को भी राम के साथ भेजने का आदेश देते हैं। राम और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ तपोवन चले जाने पर दशरथ कौशल्या से एक राजा की पीड़ा को व्यक्त करते है।