
SHRI RAM NE KIYA TAADKA VADH
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महर्षि विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को साथ लेकर एक दुर्गम वन में पहुँचते हैं जो महर्षि अगस्त्य के श्राप से राक्षसी बनी मायाविनी ताड़का और उसके पुत्र मारीच की विनाशलीला के कारण उजड़ गया था। अजनबियों की आहट पाकर ताड़का बाहर निकल श्री राम से युद्ध करने लगती है। विश्वामित्र का आदेश मिलने पर श्रीराम सूर्यास्त पूर्व ही ताड़का का वध कर संत समाज को उसके आतंक से मुक्त करा देते है। श्रीराम की वीरता और शौर्य देखकर ऋषि विश्वामित्र को दृढ़ विश्वास हो जाता है कि राम भविष्य में समस्त संकटों पर विजय प्राप्त करेंगे। इसलिए वह श्रीराम को दिव्यास्त्र प्रदान कर उनका ज्ञान देते हुए क्षत्रिय धर्म की महत्ता समझाते हैं। जब श्री राम और लक्ष्मण की निगरानी में विश्वामित्र अन्य साधुओं के साथ पुनः यज्ञ करना प्रारम्भ करते है, तभी रावण के भेजे गए असुर सुबाहु और मारीच यज्ञ में विघ्न डालने पहुँच जाते हैं। श्रीराम सुबाहु का वध कर देते हैं, जबकि मारीच को एक ही बाण से घायल कर इतना दूर फेंकते हैं कि वह समुद्र तट तक जा गिरता है। इस अद्भुत रक्षण से प्रसन्न होकर ऋषि विश्वामित्र श्रीराम का आभार प्रकट करते हुए उन्हें अपने साथ सीता का स्वयंवर देखने मिथिला चलने का निमंत्रण देते हैं। मार्ग में गंगा नदी पड़ने पर उन्हें वह उनके पूर्वजों के द्वारा गंगा अवतरण की कथा सुनाते है। उसके बाद में मार्ग में पड़ने वाले गौतम ऋषि के आश्रम पहुँचने पर अपने पति के श्राप के कारण शिला बनी अहिल्या को श्री राम के चरण स्पर्श द्वारा श्राप मुक्त करा उसका उद्धार करवाते है। जनकपुरी पहुँचने पर राजा जनक विश्वामित्र का भव्य स्वागत करते है। उनके साथ सुन्दर दो राजकुमारों को देख जनक मोहित हो जाता है और उनकी आँखों में एक चमक आ जाती है।