
SHRI RAM SITA PRATHAM MILAN
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राजा जनक की उत्सुकता देख विश्वामित्र राम और लक्ष्मण का परिचय देने के साथ उनकी वीरता, श्री राम के द्वारा किए गए ताड़का वध व अहिल्या के उद्धार का भी वर्णन करते है। अपनी माता के उद्धार की बात जानकर वहाँ उपस्थित ऋषि गौतम और अहिल्या के पुत्र भाव-विभोर हो जाते हैं। उधर महल में, सीता की सखियाँ के साथ स्वयंवर में आए राजाओं की चर्चा करते हुए हास-परिहास करती हैं। एक सखी से राम–लक्ष्मण की अनुपम छवि का वर्णन सुन सीता का मन पुलकित हो उठता है। अगले दिन देवी गौरी की पूजा करने मंदिर गई सीता को पुष्पवाटिका में गुरु पूजा हेतु पुष्प लेने आए श्री राम दिखते है। दोनों की आखें मिलती हैं और मानो समय ठहर जाता है - राम सियामय हो जाते हैं और सीता राममय। यह दृश्य साक्षात विष्णु–लक्ष्मी के पुनर्मिलन जैसा प्रतीत होता है। रात्रि में श्री राम चंद्रमा को निहारते हुए अपने भाव लक्ष्मण से साझा करते हैं और दूसरी तरफ सीता की बहनें उसे प्रेम में खोया देख छेड़ती हैं और सशंकित भी होती है कि क्या राम शिव धनुष उठा भी पाएंगे? अगले दिन मिथिला की राजसभा में विभिन्न प्रदेशों से पधारे हुए राजा-राजकुमारों को एक चारण शिव धनुष दिखाते हुए राजा जनक का प्रण बताता है कि इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने वाले पराक्रमी के साथ सीता का विवाह होगा। वहाँ उपस्थित राजा और राजकुमार अपना बल और पराक्रम दिखाने बारी-बारी से आते हैं लेकिन शिव धनुष को अपने स्थान से हिला तक नहीं पाते। यह देख जनक पछतावा करते हुए कहते है कि उन्होंने अपनी पुत्री के विवाह को कठिन बना दिया है और सब से प्रश्न करते हैं कि क्या धरती वीरों से खाली हो चुकी है। जब जनक के वचनों से लक्ष्मण क्रोधित हो उठ खड़े होते है तो विश्वामित्र लक्ष्मण को शांत करा कर राम को धनुष उठाने की आज्ञा देते हैं। राम को धनुष की ओर बढ़ते देख अन्य राजा व्यंग कसने लगते हैं। वही सीता मन ही मन देवी-देवताओं को मनाने लगती है।