
SHRI RAM JANAM
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जब राक्षसराज रावण ब्रह्मा और महादेव के वरदान स्वरूप असीम शक्तियाँ प्राप्त करके पृथ्वी और देवलोक पर अत्याचार करने लगता है, उसके पाप कर्मों से पृथ्वी पर धर्म और सत्य की हानि होने लगती है। तब देवता और साधु-संत उसकी शक्ति के सामने असहाय हो जाते हैं और उसके अत्याचारों से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु को स्मरण कराते हैं कि जब-जब धरती पर अधर्म का प्रभाव बढ़ता है और धर्म संकट में पड़ता है, तब भगवान को मानव रूप में अवतार लेकर धर्म की पुनर्स्थापना करनी पड़ती है। विष्णु सभी को आश्वस्त करते है कि वह मानव रुप में अवतार लेकर रावण का विनाश करेंगे। वही दूसरी तरफ पृथ्वी पर अयोध्या के संतानहीन राजा दशरथ महर्षि वशिष्ठ के सुझाव पर अथर्ववेद के ज्ञाता शृंग मुनि से ‘पुत्रकामेष्ठि यज्ञ’ करवाते है। यज्ञ के अंत में अग्निदेव प्रकट होते हैं और खीर से भरा एक पात्र राजा दशरथ को देते हैं, जो इच्छापूर्ति का वरदान लिए होता है। राजा दशरथ वह खीर रानियों कौशल्या और कैकेयी को दे देते हैं। स्नेहवश दोनों रानियाँ अपनी खीर का आधा-आधा भाग रानी सुमित्रा को दे देती हैं। समय के साथ नवमी तिथि और पुनर्वसु नक्षत्र के शुभ योग में तीनों रानियों को पुत्र प्राप्त होते हैं। कौशल्या और कैकेयी को एक-एक पुत्र होता है, जबकि दो अंश खीर ग्रहण करने वाली सुमित्रा को जुड़वाँ पुत्रों की प्राप्ति होती है। इस प्रकार, देवी-देवताओं और धरतीवासियों की प्रतीक्षा पूर्ण होती है। महर्षि वशिष्ठ द्वारा बच्चों का नामकरण संस्कार सम्पन्न होता है। वे कहते हैं कि धर्म और सत्य की रक्षा के लिए तथा सम्पूर्ण जगत को आनंद प्रदान करने हेतु जन्मे ज्येष्ठ पुत्र का नाम "राम" होगा। कैकेयी के पुत्र का नाम "भरत", और सुमित्रा के जुड़वाँ पुत्रों के नाम "लक्ष्मण" और "शत्रुघ्न" रखे जाते हैं। वशिष्ठ यह भी भविष्यवाणी करते हैं कि इन चारों भाइयों के बीच सदा अटूट प्रेम बना रहेगा। राजा दशरथ और उनकी तीनों रानियाँ कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा अपने पुत्रों के बाल्यकाल का सुखपूर्वक आनंद लेते हैं।