
SHRI RAM GURUKUL SHIKSHA
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समय के साथ राजा दशरथ के चारों पुत्र - राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न बड़े होने लगते हैं। वे अपने बाल्यकाल को अन्य बच्चों की भाँति खेलकूद में बिताते हैं। शिक्षा ग्रहण करने की आयु आने पर राजा दशरथ अपने सभी पुत्रों को महर्षि वशिष्ठ के गुरुकुल में भेजने के लिए रानियों और राजपुत्रों के साथ चर्चा करते हुए शिक्षा के महत्व को समझाने के साथ स्पष्ट करते हैं कि गुरुकुल में सभी शिष्य समान होते हैं - राजपुत्र और सामान्य बालक में कोई भेद नहीं किया जाता। गुरुकुल प्रस्थान से पूर्व महर्षि वशिष्ठ राजा दशरथ, रानियों और समस्त साधु-संतों की उपस्थिति में चारों राजकुमारों का विधिपूर्वक उपनयन संस्कार संपन्न कराते हैं। वे गुरु-शिष्य परंपरा का महत्व बताते हैं और यह भी समझाते हैं कि जीवन में माता, पिता और आचार्य का स्थान सर्वोपरि होता है। महर्षि वशिष्ठ के गुरुकुल चारों राजकुमारों को शिक्षा प्रारम्भ होती है। गुरु उन्हें सिखाते हैं कि आहार, व्यवहार और विचारों का मनुष्य के शरीर और मन पर क्या प्रभाव पड़ता है। साथ ही वे यह भी बताते हैं कि जैसे शिष्य के कुछ कर्तव्य होते हैं, वैसे ही गुरु का भी यह उत्तरदायित्व है कि वह अपने शिष्य को जीवन की कठिनाइयों का सामना करने योग्य बनाए। सभी राजकुमार गुरुकुल की परंपराओं का पालन करते हुए उच्च और गूढ़ शिक्षाओं को ग्रहण करते है। एक तरफ महर्षि वशिष्ठ उनको मानसिक और बौद्धिक संस्कार प्रदान कर परिपक्व बनाते हैं तो वही दूसरी तरफ गुरु माँ अरुंधति भी सभी को मातृत्व प्रदान करते हुए उनका चौमुखी विकास करती है। महर्षि वशिष्ठ उन्हें मानव शरीर के सात केंद्रों की महत्ता को स्पष्ट करते योग के द्वारा उनको काबू में करने का अभ्यास कराते है।