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महर्षि मुक्त सूत्र

महर्षि मुक्त सूत्र

By: रमेश चौहान
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यह पॉडकास्ट शो परम पूज्य महर्षि मुक्त जो किसी साधारण उपदेशक या तात्त्विक लेखक नहीं है, बल्कि पूर्णत: स्वानुभूति से उद्भूत एक परिपक्व आत्मज्ञानी है। जो न तो शास्त्रों के उद्धरणों से सीमित हैं, न ही परंपरागत धर्मनिष्ठ व्याख्याओं से, के सदग्रंथ पर आधारित है ।रमेश चौहान Spirituality
Episodes
  • अविज्ञात सखा पुरञ्जन जीव को उपदेश
    Aug 25 2025

    यह एपिशोड़ राजा पुरञ्जन के आख्यान का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करता है, जो जीव (आत्मा) और उसके अज्ञात मित्र परमात्मा के बीच के संबंध को दर्शाता है। यह कहानी एक रूपक के रूप में कार्य करती है, जहाँ राजा पुरञ्जन जीव का प्रतिनिधित्व करता है और उसका मित्र अविज्ञात परमात्मा का प्रतीक है। कहानी में एक नौ दरवाजों वाली नगरी (शरीर), एक सुंदरी (बुद्धि), ग्यारह योद्धा (इंद्रियां और मन), और पाँच सिर वाला सर्प (प्राण वायु) जैसे तत्व हैं, जो जीव के लौकिक जीवन और माया में आसक्ति को दर्शाते हैं। ग्रंथ इस बात पर जोर देता है कि मृत्यु के समय व्यक्ति जिस चीज से आसक्त होता है, उसी रूप को प्राप्त होता है, और यह भी कि परमात्मा को जानने के लिए जीव को अपने नाम और रूप का त्याग कर परमात्मा में विलीन होना पड़ता है, क्योंकि परमात्मा अविज्ञात है और उसे केवल वही जान सकता है जो स्वयं वही हो। अंततः, यह कथा आत्मज्ञान और जीव के कल्याण के लिए परमात्मा के उपदेशों को स्पष्ट करती है।

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    13 mins
  • अज्ञान रूपी "ग्रंथि" का विमोचन
    Aug 20 2025
    "महर्षि मुक्त सूत्र" की इस कड़ी में हम प्रवेश करते हैं भागवत रहस्य प्रवचनमाला – दूसरे दिन के चयनित अंशों में।महर्षि मुक्त जी यहाँ गूढ़ उपनिषद एवं गीता-सिद्धांतों की व्याख्या करते हुए ज्ञान और अज्ञान की शेष ग्रन्थि पर प्रकाश डालते हैं।एपिसोड के मुख्य बिंदु:काव्यात्मक चित्रण – "कल बल छल करि जाहिं समीपा..." जैसी पदावली के माध्यम से इन्द्रिय-द्वारों, विषय-वासनाओं और बुद्धि की स्थिति को दीपक-उदाहरण से स्पष्ट किया गया है।अविद्या की शेष ग्रन्थि – ‘अहं ब्रह्मास्मि’ की अनुभूति तक पहुँचने के बाद भी सूक्ष्म अहंकार कैसे शेष रह जाता है, इस पर गहन चर्चा।ज्ञान और अज्ञान का द्वंद्व – क्या ज्ञान स्वयं सत्य है या असत्य? यदि सत्य है तो ब्रह्म से भिन्न दूसरा सत्य हो जाएगा, और यदि असत्य है तो उससे अज्ञान कैसे मिटेगा?स्वप्न-दृष्टांत – स्वप्न में शेर और स्वप्न की बंदूक का उदाहरण देकर यह स्पष्ट किया गया कि असत्य से भी असत्य की निवृत्ति संभव है।उपनिषद का संकेत – केनोपनिषद के मंत्रों द्वारा ब्रह्मज्ञान के अकथनीय स्वरूप का विवेचन: जिसे जानने का दावा करने वाला वास्तव में नहीं जानता, और जो नहीं जानने की विनम्रता रखता है वही उसके निकट होता है।मुक्ति की अंतिम कुंजी – "मैं ब्रह्म हूँ" तक भी जो सूक्ष्म ग्रन्थि रह जाती है, उसे केवल साधन नहीं, बल्कि भगवत् कृपा ही खोल सकती है।भगवद्गीता का समर्थन – ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा (गीता 4/37) का उद्धरण लेकर दिखाया गया कि केवल विमल ज्ञान ही कर्म-बन्धन को भस्म करता है।मायापति की उपाधि – जब जीव ‘मैं ब्रह्म हूँ’ के अहंकार से भी परे होता है, तब वह मायापति बनकर शुद्ध आत्मस्वरूप में स्थित हो जाता है।एपिसोड का सार:ज्ञान तब तक अपूर्ण है जब तक "मैं जानता हूँ" या "मैं मुक्त हूँ" जैसी भावना भी शेष है। जब यह ग्रन्थि भी कट जाती है, तब आत्मा अपने शुद्ध स्वरूप में — बिना किसी संकल्प-विकल्प के, निःस्पृह, निःसंशय और निःसंग हो जाता है। यही सच्ची मुक्ति है, यही विमल ज्ञान है।#महर्षिमुक्तसूत्र #भागवतरहस्य #विमलज्ञान #अविद्याग्रन्थि #उपनिषदज्ञान #गीता_संदेश #भक्ति_वेदांत #SanatanDharma #SpiritualWisdom #BhagavadGita #VedantaPhilosophy
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    6 mins
  • आत्मबोध: अज्ञान से कृतकृत्य तक
    Aug 15 2025

    महर्षि मुक्त सूत्र पॉडकास्ट शो के इस आठवें एपिसोड में हम महर्षि मुक्त के श्रीमद्भागवत रहस्य के उन गूढ़ विचारों की चर्चा करेंगे जो आत्म-ज्ञान और अज्ञान के मूल अंतर को उजागर करते हैं। गीता के सशक्त श्लोकों के माध्यम से महर्षि मुक्त बताते हैं कि “कर्म का कर्ता और भोक्ता” होने का भाव अज्ञान का परिणाम है। जैसे कमल का पत्ता जल में रहकर भी उससे अछूता रहता है, वैसे ही ज्ञानी व्यक्ति संसार में रहते हुए भी कर्म के बंधन से मुक्त रहता है।

    यह प्रवचन प्रारब्ध कर्मों के नाश और ज्ञानाग्नि से सभी कर्मों के भस्म होने के बीच के विरोधाभास को सुलझाता है। महर्षि स्पष्ट करते हैं कि सच्चे आत्म-बोध के क्षण में संचित, प्रारब्ध और क्रियमाण – तीनों ही प्रकार के कर्म नष्ट हो जाते हैं।

    ग्रंथ देह, जीव और ब्रह्म के अध्यास को क्रमशः तमोगुण, रजोगुण और सतोगुण से जोड़ते हुए यह बताता है कि “मैं ब्रह्म हूँ” केवल एक भावना नहीं, बल्कि पूर्ण अनुभव और बोध का विषय है।

    अंततः, यह एपिसोड माया के उन सूक्ष्म विघ्नों को भी रेखांकित करता है जो आत्म-बोध की राह में बाधा बनते हैं, और यह संदेश देता है कि सच्ची कृतकृत्यता तभी आती है जब सभी भावनाएं निवृत्त होकर आत्मा अपनी पूर्णता को पहचान लेती है।

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    6 mins
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