
माया: भ्रम और ब्रह्म भेद
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यह कडी "माया: भ्रम और ब्रह्म भेद" नामक पुस्तक से उद्धृत है, जो महर्षि मुक्त द्वारा रचित "श्रीमद्भागवत रहस्य" श्रृंखला का ग्यारहवाँ एपिसोड है। इसमें आत्मा और परमात्मा के अभेद को स्पष्ट किया गया है, जहाँ परमात्मा स्वयं को उपदेश देते हुए जीव को उसके वास्तविक स्वरूप से अवगत कराता है। यह दर्पण में दिखने वाले प्रतिबिंब के उदाहरण से समझाया गया है, जहाँ बिम्ब (परमात्मा) और प्रतिबिंब (जीव) का भेद केवल उपाधि (जैसे मन) के कारण होता है। स्रोत यह भी बताता है कि जाग्रत और स्वप्न अवस्था में जीव और ईश्वर की कल्पना मन के कारण होती है, जबकि सुषुप्ति में मन के अभाव के कारण ये भेद नहीं रहते। अंततः, यह माया की शक्ति को दर्शाता है, जो असंभव को संभव बनाकर नित्य, निरंश आत्मा में भी जीव, ईश्वर, वर्ण, आश्रम, लिंग और यहाँ तक कि देवी-देवताओं के भेद की कल्पना करवा देती है, जिससे ज्ञानी विद्वान भी मोहित हो जाते हैं।