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  • Bairang Benaam Chithiyaan | Ramdarash Mishra
    Aug 24 2025

    बैरंग बेनाम चिट्ठियाँ | रामदरश मिश्र


    कब से

    यह बैरंग बेनाम चिट्ठी लिये हुए

    यह डाकिया दर-दर घूम रहा है

    कोई नहीं है वारिस इस चिट्ठी का

    कौन जाने

    किसका अनकहा दर्द

    किसके नाम

    इस बन्द लिफाफे में

    पत्ते की तरह काँप रहा है?

    मैंने भी तो

    एक बैरंग चिट्ठी छोड़ी है

    पता नहीं किसके नाम?

    शायद वह भी इसी तरह

    सतरों के होंठों में अपने दर्द कसे

    यहाँ-वहाँ घूम रही होगी

    मित्रों!

    हमारी तुम्हारी ये बैरंग लावारिस चिट्टठियाँ

    परकटे पंछी की तरह

    किसी दिन लावारिस जगहों पर और कभी किसी दिन

    पड़ी-पड़ी फड़फड़ाएँगी

    कोई अजनबी

    इन्हें कौतूहलवश उठाकर पढ़ेगा

    तो तड़प उठेगा

    ओह!

    बहुत दिन पहले किसी ने

    ये चिट्ठियाँ

    शायद मेरे ही नाम लिखी थीं।


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    2 mins
  • Jeevan | Malay
    Aug 23 2025

    जीवन/ मलय


    अथाह गहराइयों की

    आँख से


    देखता हूँ ब्रह्मांड

    सतह पर


    तैरता यह जीवन

    छोटे से छोटा है


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    1 min
  • Ichha | Shubha
    Aug 22 2025

    इच्छा | शुभा


    मैं चाहती हूँ कुछ अव्यवहारिक लोग


    एक गोष्ठी करें

    कि समस्याओं को कैसे बचाया जाए


    उन्हें जन्म लेने दिया जाए

    वे अपना पूरा क़द पाएँ


    वे खड़ी हों

    और दिखाई दें


    उनकी एक भाषा हो

    और कोई उन्हें सुने

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    2 mins
  • Ishq Mein Referee Nahi Hota | Gulzar
    Aug 21 2025

    इश्क़ में ‘रेफ़री’ नहीं होता! | गुलज़ार


    इश्क़ में ‘रेफ़री’ नहीं होता


    ‘फ़ाउल’ होते हैं बेशुमार मगर

    ‘पेनल्टी कॉर्नर’ नहीं मिलता!


    दोनों टीमें जुनूँ में दौड़ती, दौड़ाए रहती हैं

    छीना-झपटी भी, धौल-धप्पा भी


    बात बात पे ‘फ़्री किक’ भी मार लेते हैं

    और दोनों ही ‘गोल’ करते हैं!


    इश्क़ में जो भी हो वो जाईज़ है

    इश्क़ में ‘रेफ़री’ नहीं होता!

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    1 min
  • Unka Ghar | Hemant Deolekar
    Aug 20 2025

    उनका घर | हेमंत देवलेकर


    आग बरसाती दोपहर में

    तगारियाँ भर- भर कर

    माल चढ़ा रहे हैं जो ऊपर

    घर मेरा बना रहे हैं।

    जिस छत को भरते हैं

    अपने हाड़ और पसीने से

    वे इसकी छाँव में सुस्ताने कभी नहीं आएंगे

    इतनी तल्लीनता से एक- एक ईंट की

    रेत- मसाले की कर रहे तरी

    वे इस घर में एक घूँट भर पानी के लिये

    कभी नहीं आएंगे |

    दूर छाँव में खड़ेखड़े हो देखता हूँ

    वे सब पक्षियों की तरह दिन रात

    जैसे अपना ही घोंसला बनाने में जुटे हुए

    उनको शुक्रिया कहने का ख़्याल भी

    मुझे नहीं आएगा ।


    एक दिन

    सीमेंट, चूने, गारे से लथपथ

    यूं चले जायेंगे वे

    जैसे थे ही नहीं ।

    मुझे तस्सली होगी कि उन्हें

    मेहनताना देकर विदा किया

    लेकिन उनका बहुत-सा उधार

    इस घर में छूटा रह जाएगा !


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    3 mins
  • Prateeksha Mein Prem | Chitra Pawar
    Aug 19 2025

    प्रतीक्षा में प्रेम | चित्रा पंवार


    नीलगिरि की पहाड़ी

    बारह बरस बाद


    नीलकुरिंजी के खिलने पर ही

    करती है


    अपनी देह का शृंगार

    वह नहीं जाती चंपा, चमेली, गुलाब के पास


    अपने यौवन का सौंदर्य माँगने

    अयोध्या व उर्मिला के सत को विचलित नहीं करता


    चौदह साल का चिर वियोग

    जानती हैं वो


    एक दिन लौटेंगे राम

    अनुज लखन के साथ


    पार्वती कई जन्मों तक

    करती है तप


    बनाती है ख़ुद को राजकुमारी से अपर्णा

    अर्धनारीश्वर शिव की प्राण प्रिया


    वैशाख, जेठ की अग्नि में भी

    जलकर नष्ट नहीं होती धरा की हरितिमा


    क्योंकि सुन रही है वो

    पास आते सावन की पदचाप


    जहाँ प्रतीक्षा है

    धैर्य है


    लौट आने का भरोसा है

    विरह की सुखद पीड़ा है


    वहीं है प्रेम...


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    2 mins
  • Chipche Doodh Se Nahlate Hain | Gulzar
    Aug 18 2025

    चिपचे दूध से नहलाते हैं आँगन में खड़ा कर के तुम्हें | गुलज़ार


    चिपचे दूध से नहलाते हैं आँगन में खड़ा कर के तुम्हें


    शहद भी, तेल भी, हल्दी भी, न जाने क्या क्या

    घोल के सर पे लँढाते हैं गिलसियाँ भर के...


    औरतें गाती हैं जब तीवर सुरों में मिल कर

    पाँव पर पाँव लगाए खड़े रहते हो इक पथराई-सी मुस्कान लिए


    बुत नहीं हो तो, परेशानी तो होती होगी!

    जब धुआँ देता, लगाता पुजारी


    घी जलाता है कई तरह के छोंके देकर

    इक ज़रा छींक ही दो तुम,


    तो यक़ीं आए कि सब देख रहे हो!


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    2 mins
  • Raat Kisi Ka Ghar Nahi | Rajesh Joshi
    Aug 17 2025
    रात किसी का घर नहीं | राजेश जोशीरात गए सड़कों पर अक्सर एक न एक आदमी ऐसा ज़रूर मिल जाता हैजो अपने घर का रास्ता भूल गया होता हैकभी-कभी कोई ऐसा भी होता है जो घर का रास्ता तो जानता हैपर अपने घर जाना नहीं चाहताएक बूढ़ा मुझे अक्सर रास्ते में मिल जाता हैकहता है कि उसके लड़कों ने उसे घर से निकाल दिया है।कि उसने पिछले तीन दिन से कुछ नहीं खाया है।लड़कों के बारे में बताते हुए वह अक्सर रुआँसा हो जाता हैऔर अपनी फटी हुई क़मीज़ को उघाड़करमार के निशान दिखाने लगता हैकहता है उसने बचपन में भी अपने बच्चों परकभी हाथ नहीं उठायालेकिन उसके बच्चे उसे हर दिन पीटते हैंकहता है कि वह अब कभी लौटकरअपने घर नहीं जाएगालेकिन थोड़ी देर बाद ही उसे लगता है कि उसने यूँ हीग़ुस्से में बोल दिया था यह वाक़्यअपमान पर हावी होने लगती एक अनिश्चितताएक भय अचानक घिरने लगता है मन मेंथोड़ी देर बाद वह अपने आप से ही हार जाता हैदूसरे ही पल वह कहता हैकि अब इस उम्र में वह कहाँ जा सकता हैवह चाहता है, मैं उसके लड़कों को जाकर समझाऊँकि लड़के उसे वापस घर में आ जाने देंकि वह चुपचाप एक कोने में पड़ा रहेगाकि वह बाज़ार के छोटे-मोटे काम भी कर दिया करेगाबच्चों को स्कूल से लाने ले जाने का काम तोवह करता ही रहा है कई साल सेवह चुप हो जाता है थक कर बैठ जाता हैजैसे ही लगता है कि उसकी बात पूरी हो चुकी हैवह फिर बोल पड़ता है कहता है : मैं बूढ़ा हो गया हूँकभी-कभी चिड़चिड़ा जाता हूँसारी ग़लती लड़कों की ही नहीं हैवे मन के इतने बुरे भी नहीं हैंहालात ही इतने बुरे हैं, उनका भी हाथ तंग रहता हैउनके छोटे-छोटे बच्चे हैं और वो मुझे बहुत प्यार करते हैंमेरा तो पूरा समय उन्हीं के साथ बीत जाता हैफिर अचानक वह खड़ा हो जाता है कहता हैहो सकता है वे मुझे ढूँढ़ रहे होंउनमें से कोई न कोई थोड़ी देर में ही मुझे लिवाने आ जाएगाआप अगर मेरे लड़कों में से किसी को जानते होंतो उससे कुछ मत कहिएगासब ठीक हो जाएगा...सब ठीक हो जाएगा...बुदबुदाते हुए वह आगे चल देता हैरात किसी का घर नहीं होतीकिसी बेघर के लिएकिसी घर से निकाल दिए गए बूढ़े के लिएमेरे जैसे आवारा के लएरात किसी का घर नहीं होतीउसके अँधेरे में आँसू तो छिप सकते हैं कुछ देरलेकिन सिर छिपाने की जगह वह नहीं देतीमैं उस बूढ़े से पूछना चाहता हूँपर पूछ नहीं पाताकि जिस तरफ़ वह ...
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    4 mins