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Pratidin Ek Kavita

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By: Nayi Dhara Radio
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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।Nayi Dhara Radio Art Literary History & Criticism
Episodes
  • Bairang Benaam Chithiyaan | Ramdarash Mishra
    Aug 24 2025

    बैरंग बेनाम चिट्ठियाँ | रामदरश मिश्र


    कब से

    यह बैरंग बेनाम चिट्ठी लिये हुए

    यह डाकिया दर-दर घूम रहा है

    कोई नहीं है वारिस इस चिट्ठी का

    कौन जाने

    किसका अनकहा दर्द

    किसके नाम

    इस बन्द लिफाफे में

    पत्ते की तरह काँप रहा है?

    मैंने भी तो

    एक बैरंग चिट्ठी छोड़ी है

    पता नहीं किसके नाम?

    शायद वह भी इसी तरह

    सतरों के होंठों में अपने दर्द कसे

    यहाँ-वहाँ घूम रही होगी

    मित्रों!

    हमारी तुम्हारी ये बैरंग लावारिस चिट्टठियाँ

    परकटे पंछी की तरह

    किसी दिन लावारिस जगहों पर और कभी किसी दिन

    पड़ी-पड़ी फड़फड़ाएँगी

    कोई अजनबी

    इन्हें कौतूहलवश उठाकर पढ़ेगा

    तो तड़प उठेगा

    ओह!

    बहुत दिन पहले किसी ने

    ये चिट्ठियाँ

    शायद मेरे ही नाम लिखी थीं।


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  • Jeevan | Malay
    Aug 23 2025

    जीवन/ मलय


    अथाह गहराइयों की

    आँख से


    देखता हूँ ब्रह्मांड

    सतह पर


    तैरता यह जीवन

    छोटे से छोटा है


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  • Ichha | Shubha
    Aug 22 2025

    इच्छा | शुभा


    मैं चाहती हूँ कुछ अव्यवहारिक लोग


    एक गोष्ठी करें

    कि समस्याओं को कैसे बचाया जाए


    उन्हें जन्म लेने दिया जाए

    वे अपना पूरा क़द पाएँ


    वे खड़ी हों

    और दिखाई दें


    उनकी एक भाषा हो

    और कोई उन्हें सुने

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    2 mins
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