Kyaa aap jante hain? / Do you know? cover art

Kyaa aap jante hain? / Do you know?

Kyaa aap jante hain? / Do you know?

By: Asha Singh Gaur
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"Kyaa aap jante hain?" Explores the stories which open our minds to the art, culture, architecture, history/herstory and reasoning behind various beliefs we follow. The podcast celebrates everything Indian. Through this podcast, I wish to seek answers to questions that have bothered me and share them with the listeners. India is a land of diversity in every way. Let's explore this diversity with some beautiful stories.Asha Singh Gaur
Episodes
  • नागार्जुन- नए युग के कालिदास | Nagarjun - The New Age Kalidas
    Apr 26 2023
    नागार्जुन- वैद्यनाथ मिश्र - वैद्यनाथ मिश्र जी का जन्म 30 जून 1911 को भारत के बिहार के दरभंगा जिले के तरौनी गाँव में हुआ था, उन्होंने अपना अधिकांश जीवन बिहार के मधुबनी जिले के सतलखा गाँव में बिताया। बाद में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया और अपनी दीक्षा के बाद नागार्जुन नाम अपना लिया। उन्होंने पाँच वर्ष की छोटी सी उम्र में अपनी माँ को खो दिया था। वे गरीबी और अभाव में पले थे। उनके पिता एक पुरोहित थे और आस पास के गाँव में पूजा-पाठ जैसे गृह प्रवेश और अन्य अनुष्ठान करवाया करते थे। पूजा पाठ से उतनी आय नहीं हो पाती थी कि वे अपने बेटे का उचित पालन कर पाते और उन्होंने युवा वैद्यनाथ को अपने रिश्तेदारों के हाथों में सौंप दिया और उन्हीं की छत्र छाया में वे आगे बढ़े। वे एक असाधारण छात्र थे और उनकी अधिकांश शिक्षा छात्रवृत्ति जीतकर पूरी की। उन्होंने संस्कृत, मैथिली, हिंदी और प्राकृत भाषाओं में निपुणता प्राप्त की। उन्होंने पहले स्थानीय स्तर पर और बाद में वाराणसी और कलकत्ता में पढ़ाई की। उन्नीस साल की उम्र में उनका विवाह अपरिजिता जी से हो गया। नागार्जुन जी ने 1930 के दशक की शुरुआत में यात्री नाम से मैथिली कविताओं के साथ अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत की। 1930 के दशक के मध्य तक, उन्होंने हिंदी में कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। शिक्षक के रूप में अपनी पहली स्थाई नौकरी के लिए वो सहारनपुर चले गए, हालाँकि वे वहाँ लंबे समय तक नहीं रहे। वे राहुल सांकृत्यायन को अपना गुरु मानते थे और उन्हीं के प्रभाव में बौद्ध ग्रंथों को गहराई से जानने की उनकी इच्छा उन्हें श्रीलंका ले गई। १९३५ तक वे श्रीलंका के केलनिया के एक बौद्ध मठ में बौद्ध भिक्षु बन चुके थे। उन्होंने मठ में प्रवेश किया और बौद्ध शास्त्रों का अध्ययन किया, जैसा कि उनके गुरु, राहुल सांकृत्यायन ने किया था। बौद्ध धर्म कि दीक्षा लेके के बाद उनका नाम "नागार्जुन" पड़ गया। 1938 में प्रसिद्ध किसान नेता और किसान सभा के संस्थापक सहजानंद सरस्वती, द्वारा आयोजित 'समर स्कूल ऑफ पॉलिटिक्स' में शामिल होने से पहले उन्होंने लेनिनवाद और मार्क्सवाद विचारधाराओं का गहराई से अध्ययन किया। स्वभाव से घुमक्कड़ नागार्जुन ने 1930 और 1940 के दशक में भारत भर में यात्रा करते हुए आम लोगों के जन जीवन और कठिनाइयों को करीब से ...
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    9 mins
  • रामधारी सिंह दिनकर - विद्रोह के कवि | Ramdhari Singh Dinkar - The Poet of Rebellion
    Apr 24 2023
    रामधारी सिंह दिनकर - विद्रोह के कवि मैं यह दावे से कह सकती हूँ ये कविता तो आपने सुनी ही होगी। 'कृष्ण की चेतावनी' उन कविताओं में से है जिसको परिचय की ज़रूरत नहीं जिसे हर कोई पढ़ना और सुनना चाहता है और जिसे लिखा था रामधारी सिंह जी ने जिन्हें साहित्य जगत में लोग दिनकर के नाम से जानते और बुलाते थे। दिनकर जी का जन्म सिमरिया गाँव के एक भूमिहर ब्राह्मण परिवार में 23 सितंबर 1908 में हुआ था जो ब्रिटिश इंडिया की बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा था। अब यह गाँव, बिहार के बेगुसराय का हिस्सा है। स्कूल में और उसके बाद कॉलेज में उन्होंने हिंदी, संस्कृत, मैथिली, बंगाली, उर्दू और अंग्रेज़ी साहित्य का अध्ययन किया। दिनकर रवींद्रनाथ टैगोर, कीट्स और मिल्टन से काफी प्रभावित थे और उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर जी की रचनाओं का बांग्ला से हिंदी में अनुवाद भी किया। दिनकर जी के काव्य को उनके व्यक्तिगत जीवन के संघर्षों ने और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सामाजिक आक्रोश और राजनैतिक अस्तव्यस्तता ने आकार दिया। वे एक कवि और निबंधकार तो थे ही साथ ही वे एक स्वतंत्रता सेनानी, देशभक्त और विद्वान भी थे। उनकी देशभक्ति उनकी कविताओं में साफ़ झलकती है और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लिखी अपनी राष्ट्रवादी कविताओं की वजह से वे विद्रोह के कवि के रूप में उभरे। उनकी कविता में वीर रस झलकता था, और उनकी प्रेरक देशभक्ति रचनाओं के कारण उन्हें राष्ट्रकवि और युग-चारण के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। वे कई हिंदी कवि सम्मेलनों में जाया करते थे और हिंदी भाषी कविता प्रेमियों के बीच उतने ही लोकप्रिय हुए हैं, जितने रूस में पुश्किन थे। १९२९ में जब दिनकर ने कॉलेज जाना शुरू किया तब गांधीजी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हो चुका था और जगह जगह पर सायमन कमीशन के खिलाफ प्रदर्शन चल रहे थे। दिनकर ने भी शपथ पर हस्ताक्षर किए थे। गांधी मैदान में प्रदर्शन के दौरान अंग्रेजी सरकार की पुलिस ने लाला लाजपत राय पर अंधाधुंद लाठी बरसानी शुरू कर दी जिससे उनकी मृत्यु हो गई। इस घटना से पूरे देश में तूफ़ान सा आ गया और दिनकर मन में उम्दा गुस्सा उनकी कविताओं में उतर गया। दिनकर की पहली कविता 1924 में छात्र सहोदर नाम की क्षेत्रीय पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। 1928 में, सरदार वल्लभभाई पटेल ...
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    9 mins
  • अमृता प्रीतम | Amrita Preetam
    Apr 14 2023
    अमृता प्रीतम अमृता प्रीतम इनका जन्म ३१ अगस्त १९१९ में पंजाब के गुजरावाला में हुआ था जो इस समय पाकिस्तान में है। वे अपने माता पिता की एक लौती संतान थीं जो उनके जीवन में शादी के दस साल बाद आई थीं। उनकी माता राज बीबी एक टीचर थीं और उनके पिता श्री करतार सिंह हितकारी ब्रज भाषा और संस्कृत के पंडित थे और कवी भी थे। वे एक साहित्यिक मैगज़ीन के लिए एडिटर का काम किया करते थे। माता पिता ने अमृता जी का नाम अमृत कौर रखा था। घर का माहौल बहुत ही आध्यात्मिक था, जहाँ सुबह शाम भजन कीर्तन चलता रहता था। उनके पिताजी तो कविताएं लिखते ही थे पर वे भी अपने पिताजी की बहुत मदद किया करती थीं। वे बचपन से ही बहुत प्रतिभाशाली थीं और अपने पिताजी की लाडली भी थीं। अमृता जी ने ग्यारह साल की छोटी सी उम्र में अपनी माँ को खो दिया। वे बहुत बीमार थीं और बहुत प्रार्थनाओं के बाद भी नहीं बच पाईं। इस बात से नन्ही अमृता के मासूम दिल पर बहुत गहरा धक्का लगा और उन्होंने भगवान को मानना छोड़ दिया। उन्होंने अपने पिताजी से कह दिया कि वे फिर कभी भी भजन नहीं लिखेंगी। उनके इस फैंसले से घर में पिता और बेटी के बीच खूब झगड़े होते क्यूंकि पिता तो एक धार्मिक गुरु थे और सिख धर्म का प्रचार किया करते थे और अमृता अब नास्तिक हो चुकी थीं। उनके पिता ने राज बीबी की मृत्यु के बाद संन्यास लेने का मन बनाया पर बेटी के प्यार ने उनका फैसला बदल दिया। अपने पिता के प्यार के लिए अमृत ने भजन तो लिखे पर भगवान से वो विमुख हो चुकीं थीं। उनका मन धीरे-धीरे प्रेम रस की ओर झुक गया और उन्होंने प्रेम में डूबी कविताएं और कहानियां लिखना शुरू कर दिया। उसके बाद वे अपने पिताजी के साथ लाहौर आ गईं। लाहौर में वो १९४७ तक रहीं और फिर बँटवारे के दौरान सब बदल गया। उनसे उनका घर छूट गया और वे भारत आ गईं। १९३६ में इनका पहला कविता संग्रह ‘अमृत लहरें’ छपा जो अंग्रेजी में ‘द इम्मोर्टल वेव्स’ के नाम से उपलब्ध है। इसी दौरान उनकी शादी हुई प्रीतम सिंह जी से और उन्होंने अपना नाम अमृता प्रीतम रख लिया। १९४७ में पार्टीशन के दौरान सांप्रदायिक दंगों में लगभग दस लाख लोगों की जान गई। इनमें हिन्दू, मुस्लिम और सबसे ज़्यादा सिखों की जान गई। अमृता को अपने आस-पास बस लाशें, चीखें और खून ही दिखाई देने लगा। हर ओर मातम और निराशा का माहौल ...
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    11 mins
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