गीता-योग: अध्यात्मिक प्रबोधन की श्रवण यात्रा cover art

गीता-योग: अध्यात्मिक प्रबोधन की श्रवण यात्रा

गीता-योग: अध्यात्मिक प्रबोधन की श्रवण यात्रा

By: रमेश चौहान
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"गीता-योग: अध्यात्मिक प्रबोधन की श्रवण यात्रा" एक आध्यात्मिक और चिंतनशील पॉडकास्ट श्रृंखला है, जो भगवद्गीता के 18 अध्यायों की गहन व्याख्या पर आधारित है। इस चर्चा का आधार ''अध्यात्मिक प्रबोधन: गीता के 18 योग" श्रृंखला पुस्तक है । यह श्रृंखला उन श्रोताओं के लिए समर्पित है जो जीवन के गूढ़ प्रश्नों — धर्म, कर्म, आत्मा, मोह, और आत्मबोध — के उत्तर खोज रहे हैं। हर एपिसोड आपको एक नए योग अध्याय की ओर ले जाता है, जिसमें गीता के श्लोकों का स्पष्ट, भावनात्मक और शास्त्रीय वाचन किया गया है, साथ ही उनके अर्थ को आज के परिप्रेक्ष्य में सरल भाषा में समझाया गया है । "शब्द नहीं, आत्मा बोलेगी — गीता के योगों से!"रमेश चौहान Hinduism Spirituality
Episodes
  • ध्यानयोग का परिचय और महत्व
    Aug 24 2025

    गीता के 18 योग: अध्यात्मिक प्रबोधन की श्रवण यात्रा पॉडकास्ट की इस 11वीं कड़ी में प्रस्तुत है भगवद्गीता के छठे अध्याय – ध्यानयोग का सार।

    इस एपिसोड में श्रोता जानेंगे कि ध्यानयोग केवल मौन ध्यान नहीं, बल्कि आत्म-साक्षात्कार और गहन मानसिक शांति प्राप्त करने का सशक्त साधन है। इसमें बताया गया है कि सच्चा योगी या संन्यासी वह नहीं जो केवल बाहरी संसार का त्याग करता है, बल्कि वह है जो कर्तव्यों का निस्वार्थ भाव से पालन करता है, बिना फल की आसक्ति के

    एक प्रेरक लघुकथा के माध्यम से यह समझाया गया है कि संसार में रहते हुए भी निस्वार्थ कर्म और ईश्वर को समर्पण ही मोक्ष का सच्चा मार्ग है। अंततः, यह अध्याय सिखाता है कि मन, इंद्रियों और आत्मा के संतुलन के बिना न तो ध्यान संभव है और न ही शांति।

    ✨ यह कड़ी हर उस साधक के लिए है जो आधुनिक जीवन की व्यस्तताओं के बीच भी ध्यान, शांति और आत्म-ज्ञान की तलाश में है।

    🪷 टैगलाइन:
    "ध्यान ही वह सेतु है, जो मनुष्य को आत्मा से और आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है।"

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    13 mins
  • कर्मसंन्यास: कर्म और त्याग का मार्ग
    Aug 20 2025

    गीता-योग: अध्यात्मिक प्रबोधन की श्रवण यात्रा पॉडकास्ट शो की इस दसवीं कड़ी में हम श्रीमद्भगवद्गीता के कर्मसंन्यासयोग अध्याय में प्रवेश करते हैं। यह कड़ी उन गहन सिद्धांतों को उजागर करती है जो कर्म और संन्यास के बीच संतुलन स्थापित करते हैं।

    श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि यद्यपि संन्यास (कर्म का त्याग) एक मार्ग है, परंतु कर्मयोग उससे श्रेष्ठ है। कर्मयोग हमें सिखाता है कि हम संसार में रहते हुए भी अपने कर्तव्यों का पालन निष्काम भाव से कर सकते हैं। जैसे कमल-पत्र जल में रहते हुए भी जल से अछूता रहता है, वैसे ही कर्मयोगी संसार के बीच रहते हुए भी आसक्ति से मुक्त रहता है।

    यह एपिसोड श्रोताओं को यह समझने में मदद करता है कि कर्म और त्याग का सही अर्थ क्या है, और कैसे आधुनिक जीवन – चाहे कार्यस्थल हो, परिवार हो या समाज – में कर्मयोग का अभ्यास हमें संतुलन, शांति और आत्म-शुद्धि की ओर ले जा सकता है।

    ✨ आइए सुनें और समझें कि श्रीकृष्ण का यह संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि पर था।

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    5 mins
  • “ज्ञानविज्ञानयोग – आत्मिक और भौतिक संतुलन”
    Aug 15 2025
    गीता-योग: अध्यात्मिक प्रबोधन की श्रवण यात्रा के इस नौवें एपिसोड में हम श्रीमद्भगवद गीता के सातवें अध्याय — ज्ञानविज्ञानयोग — की गहराइयों में उतरेंगे। यह अध्याय न केवल दार्शनिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे जीवन के भौतिक और आध्यात्मिक पहलुओं के बीच सामंजस्य स्थापित करने का एक व्यावहारिक मार्गदर्शन भी प्रदान करता है।भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि आध्यात्मिक यात्रा में केवल ज्ञान (सैद्धांतिक या बौद्धिक समझ) ही पर्याप्त नहीं है; विज्ञान (प्रत्यक्ष अनुभव और साक्षात्कार) भी उतना ही आवश्यक है। ज्ञान वह है जो हमें शास्त्रों, गुरुओं और तर्क से प्राप्त होता है — जैसे आत्मा, ईश्वर और ब्रह्मांड के सिद्धांतों की समझ।विज्ञान, इसके विपरीत, उस ज्ञान का प्रत्यक्ष अनुभव है, जो साधना, भक्ति और ध्यान के माध्यम से आत्मसात होता है। जब ये दोनों एक साथ आते हैं, तो व्यक्ति न केवल सिद्धांत जानता है, बल्कि उसे जीता भी है।श्रीकृष्ण ब्रह्मांड की रचना को दो प्रकार की प्रकृति में विभाजित करते हैं:अपरा प्रकृति – यह भौतिक प्रकृति है, जिसमें पाँच महाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश), मन, बुद्धि और अहंकार शामिल हैं। यह परिवर्तनशील और नश्वर है।परा प्रकृति – यह जीवात्मा या चेतना है, जो अविनाशी, शुद्ध और अनंत है।यह शिक्षण हमें यह समझाता है कि हमारा शरीर और मन अपरा प्रकृति का हिस्सा हैं, जबकि हमारा वास्तविक ‘स्व’ परा प्रकृति का अंश है, जो ईश्वर से सीधा जुड़ा हुआ है।श्रीकृष्ण स्पष्ट करते हैं कि माया — उनकी दिव्य शक्ति — जीवात्मा को अपने वास्तविक स्वरूप से दूर कर देती है। माया के प्रभाव से व्यक्ति भौतिक इच्छाओं, अहंकार, और अस्थायी सुखों में उलझा रहता है।माया का यह आवरण तभी हटता है जब व्यक्ति पूर्ण भक्ति और आत्मसमर्पण के मार्ग पर चलता है। यह संदेश आधुनिक जीवन में भी उतना ही प्रासंगिक है, क्योंकि आज भी हमारी व्यस्त जीवनशैली, भौतिक इच्छाएं और सोशल मीडिया जैसी विकर्षण शक्तियाँ हमें अपने आंतरिक स्वरूप से दूर कर देती हैं।गीता में तीन गुणों — सत्त्व (शुद्धता), रजस (क्रियाशीलता) और तमस (जड़ता) — का वर्णन है। ये तीनों प्रकृति के मूल घटक हैं, जो हमारे विचारों, भावनाओं और कर्मों को प्रभावित करते हैं।सत्त्व हमें ज्ञान, ...
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    9 mins
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