भारत के शास्त्रीय नृत्य - भाग- 8 (सत्रीया) | Classical Dance forms of India – Part 8 (Satriya) cover art

भारत के शास्त्रीय नृत्य - भाग- 8 (सत्रीया) | Classical Dance forms of India – Part 8 (Satriya)

भारत के शास्त्रीय नृत्य - भाग- 8 (सत्रीया) | Classical Dance forms of India – Part 8 (Satriya)

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सत्रीया: सत्रीया नृत्य आसाम में जन्मी शास्त्रीय नृत्य की एक विधा है जिसकी रचना संत श्री शंकरदेव ने की थी। इस नृत्य के माध्यम से वे अंकिया नाट का प्रदर्शन किया करते थे। अंकिया नाट यानि वन एक्ट प्ले। ये उनके द्वारा रचित एक प्रकार का असमिया एकाकी नाटक है जो मुख्य रूप से सत्रों में प्रदर्शित किए जाता था। जैसे-जैसे इन प्रदर्शनों का विस्तार हुआ, इस नृत्य शैली को सत्रीया कहा जाने लगा क्यूंकि इसे आसाम के मठों यानि सत्रों में किया जाता था। भारत के इतिहास में तेरहवीं, चौदहवीं और पद्रहवीं शताब्दी को भक्ति काल की तरह देखा जाता है जहाँ प्रभु भक्ति का प्रचार किया गया। प्रभु भक्ति के साधन सीमित नहीं हो सकते और इसी भावना के साथ नृत्य और संगीत को भी इश्वर भक्ति का एक साधन माना गया और उनका प्रचार किया गया। असम का नृत्य और कला में एक लंबा इतिहास रहा है। शैववाद और शक्तिवाद परंपराओं से जुड़े ताम्रपत्रों से इस बात की पुष्टि होती है। आसाम में प्राचीन काल से ही नृत्य और गायन की परम्परा चली आ रही है और सत्रिया में इन्हीं लोक गीतों और नृत्यों का प्रभाव दिखता है। सत्रीया को अपनी मूल मुद्राएं और पदचारण इन्हीं लोक नृत्यों से मिली हैं जैसे की ओजपाली, देवदासी नृत्य, बोडो और बीहू। ओजपाली और देवदासी नृत्य, दोनों ही लोकनृत्य वैष्णववाद से जुड़े हैं जिनमें से ओजपाली हमेशा से ही ज़्यादा लोकप्रिय रहा है। ओजपाली के दो प्रकार हैं, सुखनन्नी ओजपाली जो शक्तिवाद यानि देवी की उपासना से जुड़ा हैं और व्याह गोय ओजपाली जो कि भगवान् विष्णु की भक्ति से जुड़ा हुआ है। व्याह गोय ओजपाली को शंकरदेव ने मठों में करवाना शुरू किया और धीरे- धीरे सुधरते सुधरते इस नृत्य ने आज के सत्रीया नृत्य का रूप ले लिया। सत्रीया नृत्य पहले केवल मठों में, वहाँ पर रहने वाले सन्यासियों या मॉन्क्स के द्वारा ही किया जाता था जिन्हें भोकोट कहते थे। इन प्रदर्शनों में वे खुद गाते थे और वाद्यों को भी खुद ही बजाते थे। समय के साथ इस नृत्य की शिक्षा स्त्रियों को भी दी जाने लगी। सत्रीया नृत्य शैली को दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है; पौराशिक भंगी, जो कि पुरशों की शैली है और 'स्त्री भंगी', जो स्त्री शैली है। इस नृत्य की पोषाक पाट सिल्क से बनी होती है और नृत्यों का मंचन आसाम के बोरगीतों पर ...
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