
भाग 2: महा शक्ति पीठ – प्रथम भाग
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हे प्रिय मित्र, क्या आप उसपवित्र नदी के तट पर खड़े होने की कल्पना कर सकते हैं, जहाँ सूर्यकी किरणें जल पर नाचती हैं, और आपके हृदय में एक कोमल पुकार गूँजती है, मानो कोईमाँ आपको अपनी गोद में बुला रही हो? यही है अष्टादशमहा शक्ति पीठों की पुकार, जहाँ माँ शक्ति की दैवीयऊर्जा दीप्तिमान है, जहाँ उनका प्रेम आपको ममता भरी गोद की तरह लपेट लेता है। पहले भाग में, हमने माँसती के बलिदान और प्रेम की कथा सुनी, जिसने 51 शक्तिपीठों को जन्म दिया। अब हम उन 18महा शक्ति पीठों में से पहलीनौ की यात्रा पर निकल रहे हैं, जो सृष्टि के सबसे पवित्र तीर्थ हैं।
देवी पुराण और आदिशंकराचार्य द्वारा रचित शक्ति पीठ स्तोत्रम में इन 18 महा पीठोंको विशेष स्थान प्राप्त है। ये पीठ सती के शरीर के उन अंगों से जुड़े हैं, जो भगवानविष्णु के सुदर्शन चक्र द्वारा खंडित होकर धरती पर गिरे। प्रत्येक पीठ पर माँशक्ति एक अनूठे रूप में प्रकट होती हैं—कभी उग्र काली के रूप में, कभी कोमलकामाक्षी के रूप में—और भगवान शिव उनके भैरव रूप में उनकी रक्षा करते हैं। ये पीठभारत की हरी-भरी पहाड़ियों से लेकर सुदूर समुद्र तटों तक बिखरे हैं, प्रत्येकएक दैवीय द्वार है, जो भक्तों को माँ की गोद तक ले जाता है।
इस यात्रा में, मैं चाहताहूँ कि आप उन लाखों भक्तों की भक्ति को अनुभव करें, जो इन पीठों की सीढ़ियाँचढ़ते हैं, दीप जलाते हैं, और माँ के चरणों में सिर झुकाते हैं। यह अंधविश्वास नहीं, बल्किशास्त्रों और सदियों पुरानी कथाओं पर आधारित अटूट विश्वास है। हम प्रत्येक पीठ कीकथा, स्थान, सती के अंग, और उनकी शक्ति का अन्वेषण करेंगे, जिनमें प्राचीन और आधुनिकभक्तों की कहानियाँ शामिल होंगी। तो, मेरे साथ चलें, माँ केप्रेम और भक्ति से भरे हृदय के साथ, इस तीर्थयात्रा की शुरुआतकरें। “ॐ शक्त्यै नमः” मंत्र का जाप करें, और माँ कीकृपा को अपने हृदय में बसाएँ।
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