
अज्ञान, आत्मघात और अंधकारमय लोक
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यह कड़ी ईशावास्योपनिषद् के तीसरे श्लोक की व्याख्या करता है, जिसमें अज्ञान और आत्मघात के परिणामों पर चर्चा की गई है। इसमें बताया गया है कि अज्ञान से घिरे लोग जो अपनी आत्मा के वास्तविक स्वरूप को नहीं पहचानते, अंधकारमय लोकों में पहुँचते हैं। 'आत्महनः' का अर्थ यहाँ शारीरिक मृत्यु नहीं, बल्कि आत्मज्ञान से विमुख होकर अज्ञान और भौतिकता में फँसना है। लेख में भगवद गीता के संबंधित श्लोकों से तुलना करके इस विचार को पुष्ट किया गया है, जो अज्ञान को विनाशकारी और आत्मज्ञान को मोक्षदायक बताते हैं। कुल मिलाकर, यह स्रोत आत्मज्ञान के महत्व और अज्ञान के खतरों पर प्रकाश डालता है।
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