• गणेश अथर्वशीर्ष मंत्र - अर्थ के साथ (Hindi Atharvashirsha Ganesh Mantra with meaning)

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गणेश अथर्वशीर्ष मंत्र - अर्थ के साथ (Hindi Atharvashirsha Ganesh Mantra with meaning)

By: Ideabrew Studios
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  • मान्यताओं के अनुसार देवगणों में प्रथम पूज्य श्री गणेश को संकट हरने वाला माना गया है। इसलिए जो भी दुख सुख में विघ्नहर्ता गणेशजी के मंत्रों जाप करता है और पूजा करता है उसे सर्व सिद्धि प्राप्त होती है। गणपति जी का अथर्वशीर्ष स्त्रोत का पाठ करते हुए संपूर्ण सामग्री का प्रयोग करना चाहिए। जिसमें कुछ सामग्री जैसे की सुगंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप व नैवेद्य आदि शामिल हैं इन्हे पूजन के समय अर्पण करने से गणेश भगवान प्रसन्न होते है इनके साथ ही दुर्वा भी चढ़ा सकते हैं। लाल व सिंदूरी रंग गणपति जी को बहुत प्रिय है लाल रंग के पुष्प से पूजन करें। भगवान गणेश के नाम से ॐ गं गणपतये नम: मन्त्र को का जाप करते हुए विधिवत पूजन करें। भगवान श्री गणेश जी के अथर्वशीर्ष स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। इससे घर और जीवन के अमंगल दूर होते हैं।

    गणेश अथर्वशीर्ष का प्रतिदिन पूर्ण शुद्धता से पाठ करने से अन्तर्मन की शुद्धि होती है। गणपति अथर्वशीर्ष के पाठ से मनुष्य में निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है। मानसिक अशान्ति से पीड़ित जातकों को भी इस दिव्य पाठ के प्रयोग से अत्यधिक लाभ मिलता है। इस पाठ के प्रयोग से जातक के मुख पर आभा का उदय होता है। गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ नकारात्मकता का नाश कर सकारात्मकता का संचार करता है। यदि आप आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं तो आपको भी यह दिव्य पाठ करना चाहिये। जिन बालकों का पढ़ाई में मन नहीं लगता उन्हें भी श्री गणपति अथर्वशीर्ष का नियमित पाठ करने से अत्यधिक लाभ प्राप्त होता है।

    According to the beliefs, the first revered among the gods, Shri Ganesha is considered to be the destroyer of trouble. Therefore, whoever chants and worships the mantras of Ganesha, the obstacle in happiness, gets all the accomplishments. While reciting the Atharvashirsh stotra of Ganapati ji, the following is recommended to be used: fragrance, akshat, flowers, incense, lamp and naivedya prasad etc. Red and vermilion colors are very dear to Ganapati ji, worship with red flowers.

    Do worship duly in the name of Lord Ganesha by chanting the mantra Om Gam Ganapataye Namah. Atharvashirsh stotra of Lord Shri Ganesh ji when recited, removes the evils of home and life. Reciting Ganesh Atharvashirsha with complete purity daily leads to purification of the inner soul. The recitation of Ganapati Atharvashirsha increases the decision making ability in a human being. The people suffering from mental disturbance also get immense benefit from the use of this divine text. The recitation of Ganesh Atharvashirsha destroys negativity and communicates positivity. If you are facing financial problems then you should also perform this divine recitation.Those children who do not feel like studying also get immense benefits by regularly reciting Shri Ganapati Atharvashirsha.

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Episodes
  • Atharvashirsha Meaning Hindi (भाग 1)
    Aug 29 2022

    श्लोक 1

    ॐ नमस्ते गणपतये ।
    त्वमेव प्रत्यक्षन् तत्त्वमसि ।
    त्वमेव केवलङ् कर्ताऽसि ।
    त्वमेव केवलन् धर्ताऽसि ।
    त्वमेव केवलम् हर्ताऽसि ।
    त्वमेव सर्वङ् खल्विदम् ब्रह्मासि ।
    त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम् ।।

    अर्थात:- हे ! गणेशा तुम्हे प्रणाम, तुम ही सजीव प्रत्यक्ष रूप हो, तुम ही कर्म और कर्ता भी तुम ही हो, तुम ही धारण करने वाले, और तुम ही हरण करने वाले संहारी हो | तुम में ही समस्त ब्रह्माण व्याप्त हैं तुम्ही एक पवित्र साक्षी हो |

    श्लोक 2

    ऋतं वच्मि । सत्यं वच्मि ।।

    अर्थात :- ज्ञान कहता हूँ सच्चाई कहता हूँ |

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    2 mins
  • Atharvashirsha Meaning Hindi (भाग 2)
    Aug 29 2022

    श्लोक 3

    अव त्वम् माम् । अव वक्तारम् ।
    अव श्रोतारम् । अव दातारम् ।
    अव धातारम् । अवानूचानमव शिष्यम् ।
    अव पश्चात्तात् । अव पुरस्तात् ।
    अवोत्तरात्तात् । अव दक्षिणात्तात् ।
    अव चोध्र्वात्तात् । अवाधरात्तात् ।
    सर्वतो माम् पाहि पाहि समन्तात् ।।

    अर्थात :- तुम मेरे हो मेरी रक्षा करों, मेरी वाणी की रक्षा करो| मुझे सुनने वालो की रक्षा करों | मुझे देने वाले की रक्षा करों मुझे धारण करने वाले की रक्षा करों | वेदों उपनिषदों एवम उसके वाचक की रक्षा करों साथ उससे ज्ञान लेने वाले शिष्यों की रक्षा करों | चारो दिशाओं पूर्व, पश्चिम, उत्तर, एवम दक्षिण से सम्पूर्ण रक्षा करों |

    श्लोक 4

    त्वं वाङ्मयस्त्वञ् चिन्मयः ।
    त्वम् आनन्दमयस्त्वम् ब्रह्ममयः ।
    त्वं सच्चिदानन्दाद्वितीयोऽसि ।
    त्वम् प्रत्यक्षम् ब्रह्मासि ।
    त्वम् ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ।।

    अर्थात:- तुम वाम हो, तुम ही चिन्मय हो, तुम ही आनन्द ब्रह्म ज्ञानी हो, तुम ही सच्चिदानंद, अद्वितीय रूप हो , प्रत्यक्ष कर्ता हो तुम ही ब्रह्म हो, तुम ही ज्ञान विज्ञान के दाता हो |

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    3 mins
  • Atharvashirsha Meaning Hindi (भाग 3)
    Aug 29 2022

    श्लोक 5

    सर्वञ् जगदिदन् त्वत्तो जायते ।
    सर्वञ् जगदिदन् त्वत्तस्तिष्ठति ।
    सर्वञ् जगदिदन् त्वयि लयमेष्यति ।
    सर्वञ् जगदिदन् त्वयि प्रत्येति ।
    त्वम् भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः ।
    त्वञ् चत्वारि वाव्पदानि ||

    अर्थात :- इस जगत के जन्म दाता तुम ही हो,तुमने ही सम्पूर्ण विश्व को सुरक्षा प्रदान की हैं सम्पूर्ण संसार तुम में ही निहित हैं पूरा विश्व तुम में ही दिखाई देता हैं तुम ही जल, भूमि, आकाश और वायु हो |तुम चारों दिशा में व्याप्त हो |

    श्लोक 6

    त्वङ् गुणत्रयातीतः ।
    (त्वम् अवस्थात्रयातीतः ।)
    त्वन् देहत्रयातीतः । त्वङ् कालत्रयातीतः ।
    त्वम् मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम् ।
    त्वं शक्तित्रयात्मकः ।
    त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यम् ।
    त्वम् ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वम् रुद्रस्त्वम्
    इन्द्रस्त्वम् अग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वञ चन्द्रमास्त्वम्
    ब्रह्मभूर्भुवः स्वरोम्

    अर्थात :- तुम सत्व,रज,तम तीनो गुणों से भिन्न हो | तुम तीनो कालो भूत, भविष्य और वर्तमान से भिन्न हो | तुम तीनो देहो से भिन्न हो |तुम जीवन के मूल आधार में विराजमान हो | तुम में ही तीनो शक्तियां धर्म, उत्साह, मानसिक व्याप्त हैं |योगि एवम महा गुरु तुम्हारा ही ध्यान करते हैं | तुम ही ब्रह्म,विष्णु,रूद्र,इंद्र,अग्नि,वायु,सूर्य,चन्द्र हो | तुम मे ही गुणों सगुण, निर्गुण का समावेश हैं |

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    3 mins

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