21 Dec 25 - “समरथ को नही दोष गोसाई” का रहस्यात्मक अर्थ! मेरे दो तल सागर और गागर ! समर्पण : परम विधान Baba Ji Bijay Vats
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00:00 समृद्ध को नही दोष गोसाई ! का बुद्धि और अस्तित्व के तल से रहस्यात्मक अर्थ !
02:30 जिसकी लाठी उसी की भेस !
04:33 मेरे संग संग चलो ! दूसरे तल पर डुबकी लगा ले !
08:57 दो प्रकार के सामर्थ्य !
10:20 उसकी दरगाह में असली न्याय होता है !
12:36 आओ ! उस तल पर चले जहां व्यक्ति वास्तव में समर्थ हो जाता है !
13:56 अगर दंड पाना चाहते हो तो कंस की तरह पाप करके दिखाओ !
17:02 में किसी से नहीं कहता कि मुझे सुनो !
19:32 में दयावश बोलता हु !
21:29 मौन पाने का इच्छुक व्यक्ति मेरे पास आए : अत्यंत स्वागत है !
23:29 रामकृष्ण परमहंस के दो तल !
26:22 उस अंतिम छोर पर जाकर प्रार्थना नहीं होती संकल्प होता है !
28:35 लोगों ने मुझसे उलट पलट चीज़ें मांगी : चमत्कार
31:42 शिशुपाल और कंस आज भी जिंदा है और युग का पुनरावर्तन !
34:56 Song ये जिंदगी के मेले !
36:04 चार्वाक का मंतव्य !
37:09 एक चोर की कहानी !
38:08 मेरे से दीक्षा लेके मुझे वही सवाल पूछते है जिसका जवाब में नई देता चाहता ! मेरा कसूर क्या है ?
42:52 तुम बस काबिलियत पा लो फिर वो पास से पास है !
43:40 उसका विधान : समर्पण !
45:04 उन्मुनि अवस्था !
46:17 भजन ... तेरी जुल्फों से जुदाई....
47:41 मुझे जरा भी खुशी नहीं होती जब तुम मेरे पास आते हो !
48:42 अभी में उसमें Disolve हुआ हु , आखिरी क्षण में इसमें Merge हो जाऊंगा और मेरी बूंद खो जाएगी !
51:21 मेरा ग्रंथ पूर्ण हो गया है । में तुम्हारी पुकार पर आया हु । मेरे हाल पर रहम करो !
52:47 ये वक्त उन पुकारो का है जिन्होंने चीत्कार किया था !
55:42 राजनीति तुच्छ होती है !
59:11 पांडव और लाक्षा गृह का षडयंत्र!
01:04:43 मेरे दो तक : गागर और सागर ! याचक और दाता !
01:07:04 मेरे बोलने का फायदा !
01:09:01 तुलसी दास के अपने ग्रन्थ लिखने के शुरुआत पर के शब्द !
01:10:27 मेरी असल जिंदगी तो तब खो गई जब मैने प्रयागराज की टिकट कर ली !
01:12:01 में बहुत पुरानी रूह हु ! देहि करीब करीब समाप्त है ! प्रश्न नामक Canceritis का फोड़ा मेरे सामने मत चीरा करे !
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